गुलजार  साब को लता मंगेशकर के साथ कई गानों को लेकर काम करने का सौभाग्य मिला; लेकिन वर्ष १९९१ में गुलजार साब के लेखन व निर्देशन में बनी फिल्म ‘लेकिन’ को खुद मंगेशकर ने ही प्रोड्यूस भी किया था.. जिसने उस वर्ष कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते थे। इस फिल्म में लता मंगेशकर का एक मशहूर गाना ‘यारा सीली सीली’; जिसके बोल गुलजार साब ने ही बनाऐ थे।

यारा सीली सीली बिरहा की रात का जलना
यारा सीली सीली, ओ यारा सीली सीली..

ये भी कोई जीना हैं ये भी कोई मरना
यारा सीली सीली, डोला सीली सीली..”

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..गुलजार साब लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि देते हुए कहते हैं कि, “मैं अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता; क्योंकि मैं उनके बारे में जितना भी बात करूंगा.. वह कम ही होगा। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि वो इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़कर चली गई हैं। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मेरे लिखे शब्दों को लताजी ने अपनी मधुर आवाज में गाया। यह मेरे अच्छे कर्म हैं कि; मैं उनके साथ काम कर सका। वे एक चमत्कार हैं और इस तरह का चमत्कार बहुत कम होता है।”

..गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की साहित्यिक कृति ‘क्षुदित पाषाण’ कथासार १८९५ पे आधारित फिल्म ‘लेकिन’ १९९१.. और इस फिल्म को मिलने वाले तमाम फिल्मफेयर व राष्ट्रीय पुरस्कारों में लता मंगेशकर को वर्ष १९९१ सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय पुरस्कार से “यारा सीली सीली” गीत के लिए नवाजा गया था। इस फिल्म के अधिकांश गीतों को गुलजार साब ने ही लिखा था; तो धुन तैयार की थी.. लता मंगेशकर के छोटे भाई हृदयनाथ मंगेशकर ने। हालांकि यह फिल्म बॉक्स अॉफिस पे ज्यादा नहीं चली थी; लेकिन आज भी लता मंगेशकर के गाऐ इस फिल्म के सभी गानें उनके अब तक के गाऐ गानों में बेहतरीन माने जाते हैं। 

..इस फिल्म के अन्य गीतों में सुरेश वाडेकर के स्वर में “सुरमयी शाम” व आशा भोंसले और गायक सत्यशील देशपांडे के गाऐ युगल गीत “झूठे नैना बोले” के साथ लता मंगेशकर की आवाज में “मैं एक सदी से बैठी हूँ” और “सुनियो जी अरज म्हारियो” गीत; तो साथ ही अपने भाई हृदयनाथ मंगेशकर के युगल स्वर में गाया “जा जा रे” गीत।फिर एक लंबे फिल्मी सफर के दौर को देखने के बाद हृदयनाथ मंगेशकर को भी इस फिल्म में सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए वर्ष १९९१ का राष्ट्रीय पुरस्कार; जो किसी भी बड़े मंच पर पहली बार ही प्राप्त हुआ था।

..फिर तो; फिल्म ‘लेकिन’ १९९१ के साथ वर्ष १९९३ में प्रदर्शित फिल्म ‘रुदाली’ के फिल्मी पोस्टरों के साथ इन फिल्मों के अॉडियो कैसेट कवर्स भी ‘गुलजार साब’ के नाम से रौशन दिखा करते। उन दिनों की ये दोनों ही फिल्में जो राजस्थानी बैकग्राउंड पे बनी थी; और वहाँ की आंचलिक धुनों से पिरोयी इन फिल्मों के तमाम गानों में लता मंगेशकर के साथ असमिया क्लासिकल सिंगर भूपेन हजारिका की ‘टांसी’ हुई आवाज.. बिल्कुल ही सचिन देव बर्मन के सुरों की तरह; मगर एक संस्करण में।

“दिल हूँ हूँ करे, घबराए
घन धम धम करे, गरजाए
एक बूँद कभी पानी की
मोरे अँखियों से बरसाए..

तेरी झोली डारूँ, सब सूखी पात जो आए
तेरा छुआ लगे, मेरी सूखी डाल हरियाए
दिल हूँ हूँ करे, घबराए..

जिस तन को छूआ तूने उस तन को छुपाऊँ
जिस मन को लागे नैना, वो किसको दिखाऊँ
ओ मोरी चन्द्रमा, तेरी चाँदनी अँग जलाए
ऊँची तोरी अटारी, मैं ने पँख लिए कटवाए
दिल हूँ हूँ करे..”

..राग ‘देशकर भूपाली’ पे आधारित लता मंगेशकर व असमिया क्लासिकल गायक व संगीतकार भूपेन हजारिका के स्वरों में फिल्म ‘रुदाली’ १९९३ की “दिल हूँ हूँ करे.. पार्ट१/पार्ट२” गीत; जिसे लिखा था गुलजार ने और धुन भूपेन हजारिका की थी।

इस गाने के लिए संगीतकार भूपेन हजारिका को वर्ष १९९४ का राष्टीय सर्वश्रेष्ठ संगीतकार अवार्ड से सम्मानित किया गया था; तो साथ ही इस फिल्म के अन्य गीतों में लता मंगेशकर के गाऐ राग ‘वृंदावनी सारंग’ पे आधारित “झूठी मुठी मितवा” व आशा भोंसले और भूपेन हजारिका के साथ स्वरों में “समय ओ धीरे चलो..” व “मौला ओ मौला” गीत काफी पॉपुलर हुए थे। अपने लिखे गीतों के साथ; गुलजार साब ने इस फिल्म के लिए कथा लेखन का भी कार्य किया था.. और काफी सराहे भी गए थे।